Sunday, June 27, 2010

माँ



याद है आज भी वो बचपन प्यारा
वो डगमगाते कदमो को तेरी ऊँगली का सहारा
हर मुश्किल के सागर में तेरी ममता का किनारा,
चाहे पापा की डांट हो या सोलह का पहाडा.

वो खेल कूद के थक के घर आना
'मम्मी भूख लगी' जोर से चिलाना
वो लस्सी, वो मठरी और आम का आचार,
तेरे हाथो का जादू, उसपर तेरी ममता और प्यार,

जब दोस्तों से लड़ के मैं कमरे में रोती
तुम बिना कुछ पूछे मेरे पास बैठी होती,
जब कभी हार के मैं घर वापस आती,
तुम मेरे लिए सबसे अच्छा खाना बनाती.

मेरी हर जीत में, मेरी हर हार में,
मेरे हर छोटे बड़े राज में,
कभी कुछ कहके कभी कहे बिना,
तुम मेरे साथ थी हर हाल में.

मेरी सहेली, मेरी गुरु, मेरी शान हो तुम,
मेरी राह मेरी दिशा मेरी आधार हो तुम,
ममता का सागर आपार हो तुम,
मेर जीवन का सार हो तुम.

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