दूसरो सा बनने में इतना मशरूफ हो गए ,
के अब तू अपने मन की आवाज़ में भी किसी और के लव्ज़ हैं
याद करने से भी याद नहीं आता की खुद क्या सोचते थे हम
अपने सोचने खा ढंग भी किसी और का ही है।
हमने कुछ और दिखाके, कुछ और कह के,
खुद को छुपा के, दुनिया को दिए धोके
पर कभी कभी एक सरगोशी सी महसूस होती है, ,
कहीं दर्द जैसा, शायद वही हम होंगे।
पर खुद से कब तक भागते , थक के कब तक ना हारते
टकरा ही गए आखिर अपने आप से।
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