क्योँ नहीं सवाल इन आँखों में, कभी पुछा क्योँ नहीं,
क्योँ दूर हो गए तुम यूँ, न पुछा हमने कभी,
ये साथ है जब तो, क्योँ सन्नाटा चीखता है कान में,
क्योँ दिल भूल जाता है की कोई और भी रहता है इस मकान में.
क्योँ आंखें आँखों को देख कर कुछ कहती नहीं,
क्योँ बातें पहले की तेरह अब बहती नहीं,
क्योँ सुनने से पहले ही तुम थक जाते हो,
क्योँ गले लगने से पहले ही हम रुक जाते है,
ख़ामोशी है बस, एक ख़ामोशी है लम्बी सी
दिल, ऑंखें, बातें, सब चीज़ें है संभली सी
इतने सालों बाद भी कुछ पराया सा अहसास है,
आज भी तुझ में हमें 'एक दोस्त' की तलाश है
nice
ReplyDeletethank you Sir.
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